अपने ही जब देने लगे दर्द तो... क्या है जीने में मजा विश्वास का नीव ही हिल जाएँ तो ... क्या है जीने मे मजा अश्क जब बन जाएँ खून तो ... क्या है जीने में मजा नैया रहे जब बिन मांजी तो.... क्या है जीने मे मजा
हर टूटे रिश्ते की नींव होती है शुरु शव्द रुपी प्रहार से लाठी हो या पत्थर होता है बस जिस्म ही घायल जिस्म की हड्डियो की टूटन हो जाते है खत्म.... दवा व प्रेम की महलम से लेकिन..शब्दों के प्रहार का दर्द् कर् जाता है हर रिश्ते को घायल ।