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शनिवार, 12 अप्रैल 2014

मंजिल


मंजिल की तलाश करते करते,
दिशाहीन हो के रह गये
है यही नसीब का खेल शायद,
हो गई दफन वो मंजिले-आरजू
पडते है पग बस उस राह पर ,
जो न पहूँचे किसी मंजिल पर
रास्ता जो है दिखता,
उस पर चलते गये ।
दिन हो या रात
इक लाश सा बोझिल शरीर लिए
यूँ ही चलते चले गये ।

अंजना..

चित्र गूगल साभार