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बुधवार, 28 जुलाई 2010

मेरी कूची व कलम




जख्म से रिसते लहू का गिरना

न देख पाये हम अब ।
मौत की वादी में खुशी का अहसास
न कर पाये हम अब ।
हर चेहरे के पीछे इक नया चेहरा
न सह पाये हम अब ।
समुद्र की तूफानी लहरों में जीने की आशा..
न धोखा दे पाये मन को हम अब ।
झोली में हो कांटे और करुं फूल का अहसास
न ये कर पाये हम अब ।
गम में हर्ष की कल्पना
ऎसा अहसास न कर पाएं हम अब ।


अंजना की कलम से

37 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर और प्रशंसनीय ,,,,!

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  2. बहुत अच्छा प्रयास है। शुभकामनायें

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  3. आप सभी इसी तरह अपनी प्रतिक्रिया प्रकट कर मेरा उत्साहवर्धन करते रहे ।आप सभी का बहुत बहुत आभार ।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. sunder bhavpoorn prastuti bahut kuch spasht karate hue.........
    ati sunder

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  6. Hi..

    Hum ab tak ye soch rahe hain..
    Pahle kyo na aaye hum..
    Padhte kuchh kavitayen hum bhi..
    Bhul ke hum duniya ke gum..

    Ab aaye to hum aayenge..
    Har kavita main sang sada..
    Tere blog ka peechha humne
    aaj se karna shuru kiya..

    Sundar kavita..

    Deepak..

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  7. खूबसूरती से लिखे हैं आपने अपने एहसास ..

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  8. bahut hi sundar....
    rachna v aur tasweer v.....
    badhai.......

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  9. बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
    मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!

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  10. अजी हम तो यही कहेंगे....
    हारिये ना हिम्मत,
    बिसारिये ना राम!
    साधुवाद!

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  11. आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .

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  12. अंजना जी, गजब की कलम और अजब भाव है आपके. बहुत ही सुन्दर. फर्क मात्र इतना है की आप अपने दिल के भावो को शब्दों में पिरो कर कविता लिखती है और मै उन्ही भावो से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरी गुफ्तगू में स्वागत है.
    www.gooftgu.blogspot.com

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  13. सूक्तियों जैसे इस रचना के सभी छंद बहुत सुन्दर रहे!

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  14. anjana jee, bahut sundar........bahut pyari rachna........:)

    "jholi me kante aur karun phool ka ahssaas"

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  15. WAAH WAAH

    KYA KHOOB LIKHA HAI , MAN KO CHOO GAYI KAVITA .. BADHYI HO

    VIJAY
    आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

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  16. गम में हर्ष की कल्पना
    ऎसा अहसास न कर पाएं हम अब

    waah!!!!!!!!!!!

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  17. आदरणीया अंजना जी
    नमस्कार !
    अनेक बार विपरीत परिस्थितियों को स्वीकार करने के सिवा कोई चारा नहीं होता …

    आपकी आगामी रचनाओं में आशावाद और सुखद अनुभूतियां मुखरित होंगी , यह मंगलकामना भी है , प्रत्याशा भी ।

    शुभकामनाओं सहित …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  18. सचाई की मासूम स्वीकृति ! बधाई

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  19. अंजना जी

    अब कुछ नया भी पोस्ट कीजिए …
    :)

    शु्भकामनाओं सहित
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  20. राजेन्द्र जी मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद । जल्दी ही नई पोस्ट ले कर आऊंगी ।

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