अपने ही जब देने लगे दर्द तो...
क्या है जीने में मजा
विश्वास का नीव ही हिल जाएँ तो ...
क्या है जीने मे मजा
अश्क जब बन जाएँ खून तो ...
क्या है जीने में मजा
नैया रहे जब बिन मांजी तो....
क्या है जीने मे मजा
अंजना
हर टूटे रिश्ते की नींव होती है शुरु
शव्द रुपी प्रहार से
लाठी हो या पत्थर
होता है बस जिस्म ही घायल
जिस्म की हड्डियो की टूटन
हो जाते है खत्म....
दवा व प्रेम की महलम से
लेकिन..शब्दों के प्रहार का दर्द्
कर् जाता है हर रिश्ते को घायल ।
(अंजना )
चित्र गूगल सर्च से साभार
खुशी हो कर भी खुशी का एहसास नहीं ।
दर्द ए चुभन हो कर भी चुभन का एहसास नही ।
ऎसा हुआ है क्या ?
कि इस गहराई में डूब कर भी
डूबने का एहसास नही ।
(अंजना )
चित्र गूगल साभार