दुख रुपी परतो के अवरण में
फँसी ये हँसी …
चीखती है, चिल्लाती है...
कर दो आजाद मुझे
दुख व डर की..
सलाखो को निहारती ये हँसी...
मौन हो मन ही मन बुदबुदाती
कर दो आजाद अब तो मुझे
तभी दुखी परते सुन ये बुदबुदाहट
फैलाती है अपने पँख
ओर ले लेती है फिर
अपनी ओट मे..
मौन के सन्नाटे मे फिर..
खत्म हुआ अस्तित्व
इस हँसी का ।
Anjanna
चित्र गूगल साभार