मंजिल
की तलाश करते करते,
दिशाहीन हो
के रह गये
है यही
नसीब का खेल शायद,
हो गई दफन
वो मंजिले-आरजू
पडते है पग बस उस राह पर ,
जो न पहूँचे
किसी मंजिल पर
रास्ता
जो है दिखता,
उस पर चलते
गये ।
दिन हो या
रात
इक लाश सा
बोझिल शरीर लिए
यूँ ही चलते
चले गये ।
अंजना..
चित्र गूगल साभार