मंजिल
की तलाश करते करते,
दिशाहीन हो
के रह गये
है यही
नसीब का खेल शायद,
हो गई दफन
वो मंजिले-आरजू
पडते है पग बस उस राह पर ,
जो न पहूँचे
किसी मंजिल पर
रास्ता
जो है दिखता,
उस पर चलते
गये ।
दिन हो या
रात
इक लाश सा
बोझिल शरीर लिए
यूँ ही चलते
चले गये ।
अंजना..
चित्र गूगल साभार
nice
जवाब देंहटाएंThanks for Artical Sharing Infromation and / Helpful.Great Information.
जवाब देंहटाएंआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
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