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गुरुवार, 28 जून 2012

हँसी





दुख रुपी परतो के अवरण में
फँसी ये हँसी 
चीखती हैचिल्लाती है...
कर दो आजाद मुझे
दुख डर की..
सलाखो को निहारती ये हँसी...
मौन हो मन ही मन बुदबुदाती
कर दो आजाद अब तो मुझे
तभी दुखी परते सुन ये बुदबुदाहट
फैलाती है अपने पँख
ओर ले लेती है फिर
अपनी ओट मे..
मौन के सन्नाटे मे फिर..
खत्म हुआ अस्तित्व 
 इस हँसी का

Anjanna

चित्र गूगल साभार